सिनेमाघरों में शुरू होने से पहले इस फिल्म ही होती थी पूजा, चप्पल उतारकर देखते थे दर्शक, ना ये आदिपुरुष ना ही रामायण

हॉल के अंदर, कई महिलाएं अपनी चप्पलें उतार देती थीं. कुछ तो नंगे पांव ही थीं. वे स्क्रीन पर चल रही कहानी को श्रद्धा और आश्चर्य के साथ देखती थीं, जैसे वे किसी सत्संग में शामिल हों.

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