व्यवस्था की विफलता को दर्शाती हैं युवाओं की आत्महत्याएं : सुप्रीम कोर्ट

ब्लिट्ज ब्यूरो

नई दिल्ली। छात्रों की आत्महत्याओं के बढ़ते मामलों के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। ये दिशानिर्देश तब तक लागू रहेंगे जब तक सरकार इस विषय पर कोई कानून नहीं बनाती। शीर्ष अदालत ने कहा कि आत्महत्याओं के कारण युवाओं की मौतें ‘प्रणालीगत विफलता’ को दर्शाती हैं। इस मुद्दे की अनदेखी नहीं की जा सकती।
पीठ ने केंद्र से 90 दिनों के भीतर न्यायालय के समक्ष अनुपालन हलफनामा दायर करने को कहा है। हलफनामे में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स की रिपोर्ट और सिफारिशों को पूरा करने की अपेक्षित समय-सीमा का भी उल्लेख किया जाएगा। कोर्ट ने 15 दिशानिर्देश पारित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा 2022 में प्रकाशित आंकड़े बेहद चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं।
पीठ ने कहा, युवाओं को अक्सर मनोवैज्ञानिक तनाव, पढ़ाई के बोझ, संस्थागत असंवेदनशीलता जैसे रोके जा सकने वाले कारणों से लगातार जान गंवानी पड़ रही है। ये घटनाएं व्यवस्थागत विफलता को दर्शाती हैं जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। भारत में 2022 में 1,70,924 आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 7.6 प्रतिशत, लगभग 13,044, छात्रों द्वारा आत्महत्या के मामले थे। इनमें से 2,248 मौतें परीक्षा में असफलता के कारण हुईं। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार पिछले दो दशकों में छात्रों में आत्महत्या की संख्या 2001 में 5,425 से बढ़कर 2022 में 13,044 हो गई है। पीठ आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हाई कोर्ट ने विशाखापत्तनम में राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे 17 वर्षीय छात्र की अप्राकृतिक मृत्यु की जांच सीबीआई को सौंपने की याचिका को खारिज कर दिया गया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का भिन्न अंग है। संकट की गंभीरता को देखते हुए तत्काल अंतरिम सुरक्षा उपाय करना आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश
सभी शैक्षणिक संस्थानों को उचित छात्र-परामर्शदाता अनुपात सुनिश्चित करना होगा
छात्रों के समूहों को विशेष रूप से परीक्षा अवधि के दौरान निरंतर, अनौपचारिक और गोपनीय सहायता प्रदान करने के लिए मॅटरों या काउंसलरों की नियुक्त अनिवार्य शैक्षणिक संस्थानों को स्थानीय अस्पतालों और आत्महत्या रोकथाम हेल्पलाइनों के लिए तत्काल रेफरल के लिए लिखित प्रोटोकाल स्थापित करना होगा।
हर शिक्षण संस्था को मानसिक स्वास्थ्य नीति अपनानी होगी, जो ‘उम्मीद’, ‘मनोदर्पण’ और राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम नीति से प्रेरित हो। संस्थानों को आंतरिक समिति या नामित प्राधिकारी का गठन करना होगा, जो यौन उत्पीड़न, रैगिंग और अन्य शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई करने और पीड़ितों को मनोवैज्ञानिक-सामाजिक सहायता उपलब्ध कराने में सक्षम होगा। शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को वर्ष में कम से कम दो बार अनिवार्य प्रशिक्षण लेना होगा, जिसे प्रमाणित मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा, चेतावनी के संकेतों की पहचान, आत्म-क्षति के प्रति प्रतिक्रिया और रेफरल तंत्र पर आयोजित किया जाएगा। सभी शैक्षणिक संस्थानों को छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर माता-पिता और अभिभावकों के लिए नियमित रूप से कार्यक्रम आयोजित करने होंगे।
टेली-मानस सहित आत्महत्या हेल्पलाइन नंबरों को छात्रावासों, कक्षाओं और वेबसाइटों पर बड़े और सुपाट्य अक्षरों में प्रदर्शित किया जाएगा। सभी शैक्षणिक संस्थानों को सुनिश्चित करना होगा कि सभी कर्मचारियों को संवेदनशील, समावेशी और गैर-भेदभावपूर्ण तरीके से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति समेत हाशिए पर रहने वाले पृष्टभूमि के छात्रों के साथ जुड़ने के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किया जाए।
हास्टल मालिकों, वार्डन और केयरटेकरों सहित सभी आवासीय-आधारित शैक्षणिक संस्थानों को सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय कदम उठाने होंगे कि परिसर में उत्पीड़न, बदमाशी, मादक पदार्थों का उपयोग न हो। यह भी कहा कि मानसिक स्वास्थ्य जीवन के अधिकार का भिन्न अंग मानसिक स्वास्थ्य साक्षरता, जीवन कौशल शिक्षा और संस्थागत सहायता सेवाओं के बारे में जागरूकता को सह-पाठ्यचर्या गतिविधियों में एकीकृत किया जाएगा। शैक्षणिक बोझ को कम करने तथा छात्रों में टेस्ट स्कोर और रैंक से परे पहचान की व्यापक भावना विकसित करने के लिए परीक्षा पैटर्न की समय-समय पर समीक्षा की जाएगी। कोचिंग सेंटरों और प्रशिक्षण संस्थानों सहित सभी शैक्षणिक संस्थानों को छात्रों और उनके माता-पिता या अभिभावकों के लिए नियमित कैरियर काउंसलिंग सेवाएं देनी होंगी।
सभी शैक्षणिक संस्थानों को गोपनीय रिकार्ड रखना होगा और एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करनी होगी, जिसमें स्वास्थ्य हस्तक्षेप, छात्र रेफरल, प्रशिक्षण सत्र और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी गतिविधियों की संख्या दर्शाई जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर संस्थान की लापरवाही से छात्र आत्महत्या करता है, वो संस्थान को कानूनी व प्रशासनिक रूप से जिम्मेदार ठहराया जाएगा।

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