लंबे समय तक बैठकर काम करने से प्रजनन क्षमता पर बुरा असर
ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। क्या आप भी उनमें से हैं, जो एक बार दफ्तर जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ जाती हैं तो उठने का ध्यान ही नहीं रहता? क्या आपको भी हाल-फिलहाल ऐसा लग रहा है कि आपके काम करने की गति में कमी आ रही है? विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) कहता है कि हमारा दिमाग 90 मिनट से अधिक किसी एक चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता। इसके बाद उसे कुछ देर के लिए आराम चाहिए। इस संगठन से जुड़ी डॉक्टर मारिया पैट्रिक कहती हैं, ‘विकासशील देशों में इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता। महिलाओं के लिए यह खास जरूरी है कि हर एक घंटे बाद वो अपनी जगह से उठकर कम से कम पांच मिनट के लिए टहलें। ऐसा न करने पर दस सालों के भीतर कई शारीरिक विकार जन्म लेते हैं। कई बार तो इससे उनकी प्रजनन क्षमता पर भी असर पड़ता है।’
बच्चा पैदा न करने की कई वजह
दक्षिण कोरिया में पिछले कुछ सालों से बच्चों की जन्म दर लगातार घट रही है। पिछले दस सालों में वहां इतने कम बच्चे पैदा हुए हैं कि तीन साल पहले वहां की सरकार को घोषणा करनी पड़ी कि अगर हालात यही रहे तो 60 साल बाद वहां की जनसंख्या घटकर आधी से भी कम रह जाएगी। नौजवानों में बच्चा पैदा न करने की कई वजहें रही हैं। सबसे बड़ी वजह उच्च शिक्षा का महंगा होना है। इसके बाद नौकरी में आने वाली दिक्क तें और युवाओं में सुंदर दिखने की बढ़ती लत और चेहरे की सर्जरी पर होने वाला खर्च। यही नहीं, घर बसाना वहां एक महंगा सौदा है। दो दशक से वहां की कामकाजी स्त्रियों ने यह भी महसूस किया कि पितृसत्ता के चलते बच्चा पैदा करना और उनकी परवरिश से जुड़ा हर काम उनके जिम्मे आ जाता है।
यही नहीं, युवतियों को नौकरी करते हुए यह जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। यह एक बड़ी वजह थी कि लड़कियां शादी देर से करने लगीं और बच्चे के जन्म को लेकर उदासीन रहने लगीं। इन सबका शिशु जन्म दर पर गहरा असर पड़ने लगा लेकिन अच्छी खबर यह है कि पिछले कुछ सालों के मुकाबले इस वर्ष वहां जन्म दर में सुधार होना शुरू हो गया है। वहां अचानक फर्टिलिटी क्लीनिक की बाढ़-सी आ गई है। यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड में हुए एक ताजा अध्ययन के मुताबिक दक्षिण कोरिया में हर छह में से एक बच्चा आईवीएफ तकनीक के जरिये पैदा हो रहा है। वहां की सरकार युवा जोड़ों को कई तरह की सुविधाएं दे रही हैं, ताकि वे समय से बच्चे पैदा कर सकें।
सरकारी विज्ञापनों द्वारा भी इस बात को प्रचारित किया जा रहा है कि बच्चा पैदा करना और उनकी परवरिश करना सिर्फ मां की नहीं, बल्कि पिता की भी जिम्मेदारी है। इन सब विज्ञापनों की वजह से युवा अपने पारिवारिक जिंदगी के प्रति संजीदगी से सोचने लगे हैं।
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