मिठास बनी रहे
दीपक द्विवेदी
अब हमें यह उम्मीद करनी चाहिए कि वैश्विक मजबूरियों के चलते ही सही; भारत-चीन-रूस के बीच जो मिठास बढ़ी है वह वैश्विक जन-कल्याण के लिए सदैव बरकरार रहे।
प्र धानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी हाल ही में चीन और जापान की यात्रा करके भारत लौट आए हैं। प्रधानमंत्री मोदी का यह विदेशी दौरा निश्चित रूप से नए भारत के विकास और आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को पाने में एक बड़ा मील का पत्थर भी साबित होगा। इस महत्वपूर्ण विदेशी यात्रा के दौरान जहां जापान से भारत के अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग के नए आयाम जुड़े, वहीं चीन की यात्रा भी विशेष रूप से उल्लेखनीय रही जिस पर पूरे विश्व की निगाहें लगी रहीं। प्रधानमंत्री मोदी का चीन दौरा करने का निर्णय परिणामों की दृष्टि से भी अत्यधिक फलदाई रहा, इसमें कोई भी दो राय नहीं है। पीएम मोदी चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए गए थे। मोदी की चीन और जापान की यह यात्रा 7 वर्ष बाद हुई। उनकी यह यात्रा भारत सरकार की विदेश नीति के दृष्टिकोण में बदलाव का भी एक स्पष्ट संदेश दे रही है। साल 2020 के सैन्य प्रतिरोध के बाद पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यह पहली द्विपक्षीय बैठक थी। इसके अतिरिक्त मोदी को शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में शामिल हुए 3 साल हो गए हैं। एससीओ एक यूरेशियाई समूह है जिसे स्पष्ट रूप से पश्चिम विरोधी माना जाता है। तियानजिन के इस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी, चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच की गर्म जोशी की जो तस्वीरें सामने आई हैं, उन्होंने एक निष्कि्रय सी पड़ी रूस-भारत-चीन की त्रिपक्षीय बैठक की यादें कहीं न कहीं ताजा कर दीं।
यहां यह उल्लेख करना भी अत्यंत जरूरी है कि इन तीनों नेताओं की यह मुलाकात ऐसे परिदृश्य के बीच में हो रही है जब रूस से तेल खरीदने के नाम पर अमेरिका ने भारत पर जबरदस्ती 50 प्रतिशत का टैरिफ लगा दिया है क्योंकि अमेरिका का यह मानना है कि भारत रूस से जो तेल खरीद रहा है उसके भुगतान से यूक्रेन के खिलाफ रूस युद्ध जारी रखे हुए है। ऐसे में इन तीनों नेताओं की तस्वीरों ने अमेरिका सहित पूरे विश्व में तहलका मचा दिया है और पश्चिम को एक नए ‘वर्ल्ड ऑर्डर’ के उभरने का भय सताने लगा है। यहां यह भी उल्लेख करना समीचीन है कि जिस चीन को भारत का कट्टर दुश्मन माना जाता है; उसी चीन ने अमेरिका के टैरिफ वार के खिलाफ खुलकर भारत का समर्थन किया है। इसे उसने अमेरिका की बेजा कार्रवाई भी करार दिया है। चीन के साथ भारत की द्विपक्षीय बैठक में दोनों नेताओं ने अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण समझौते करने और उन्हें आगे बढ़ाने के अपने-अपने संकल्पों को दोहराया और विश्व व्यापार को स्थिर करने के लिए सीधी उड़ानों, दोनों देशों के बीच वीजा सुविधा और आर्थिक संबंधों के निर्माण को भी हरी झंडी दिखा दी। जहां पीएम मोदी ने आपसी विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता के आधार पर संबंधों को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई वहीं जिनपिंग ने ‘ड्रैगन’ यानी चीन और ‘हाथी’ यानी कि भारत के एक साथ आने का आह्वान किया। जिनपिंग ने कहा कि वैश्विक स्थिरता और क्षेत्रीय विकास के लिए भारत और चीन का साथ आना आज के समय की जरूरत है। ऐसी सहृदयता एक साल पहले तक नितांत अकल्पनीय थी और यह साफ है कि कुछ हद तक भारत पर टैरिफ और प्रतिबंध लगाने के अमेरिकी कदमों और ट्रंप प्रशासन के इरादों के बारे में नई दिल्ली की अविश्वास की भावना से प्रेरित भी है।
यद्यपि अमेरिका के कुछ समझदार नेता ट्रंप के फैसलों से उत्पन्न खराब हालात को संभालने के प्रयास कर रहे हैं और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो भारत-अमेरिकी संबंधों को 21वीं सदी की सबसे ऐतिहासिक साझेदारी बता रहे हैं पर जो खटास पैदा हो गई है, उसे दूर होने में अब समय लगना लाजिमी है। वैसे चीन भी अनेक अवसरों पर भारत विरोधी रुख अख्तियार करता रहा है जिसमें ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को समर्थन, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार और एनएससी की संस्था पर भारत के कदमों को रोकना एवं पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों को आतंकवादी घोषित करने पर रोक भी शामिल है लेकिन चीन के वर्तमान रुख ने कहीं न कहीं भारत और मोदी सरकार को फिलहाल चीन की कार्रवाइयों पर चिंता दूर करने का एक मौका भी प्रदान किया है। ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है कि शंघाई सहयोग संगठन का जो संयुक्त घोषणा पत्र जारी हुआ, उसमें भारत आतंकवादियों की सीमा पार गतिविधियों के विरुद्ध कड़े शब्दों का प्रयोग और पहलगाम हमले की निंदा का प्रस्ताव जुड़वाने में सफल रहा जबकि इस मंच पर पाकिस्तान भी मौजूद था। यही नहीं, भारत अकेला ऐसा देश है जिसने चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना का समर्थन करने वाले अनुच्छेद का विरोध करना जारी रखा। इसके अलावा एससीओ सदस्यों के बीच ‘सभ्यता का संवाद’ शुरू करने के पीएम मोदी के सुझाव का जिक्र भी घोषणा पत्र में समाहित किया गया। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने चीन की अपनी इस यात्रा को उत्पादक बताया है। अब हमें यह उम्मीद करनी चाहिए कि वैश्विक मजबूरियों के चलते ही सही; भारत-चीन-रूस के बीच जो मिठास बढ़ी है, वह वैश्विक जन-कल्याण के लिए सदैव बरकरार रहे।
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