बिहार चुनाव: पिछले 30 सालों में फीका क्यों पड़ गया लोकतंत्र का उत्सव?
चुनावी माहौल में तब रतजगी हुआ करती थी. हर शाम, फसल काटने और मवेशियों को बांधने उन्हें चारा खिलाने और दीया-बाती जलाने के बाद राजनीति का असली रंगमच शुरू होता था. चौक-चौराहों पर भोजपुर के ढोल वादक और मिथिला के गायक इकट्ठा होते और वहां खुले में रंगमच सज जाया करता.
Hindi