45 साल पहले ऐसे दी थी नक्सलवाद ने महाराष्ट्र में खूनी दस्तक
नक्सलियों ने पाया कि गढ़चिरौली की सामाजिक-आर्थिक स्थितियां सशस्त्र संघर्ष के लिए अनुकूल थीं. यहां के निवासी, जो मुख्य रूप से आदिवासी थे और जंगल की उपज पर निर्भर थे, तेंदूपत्ता और बांस के ठेकेदारों तथा सरकारी अधिकारियों द्वारा सताए जाते थे.
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