मानवता के लिए वैश्विक शांति जरूरी

दीपक द्विवेदी

नई दिल्ली।ईरान और इजरायल, दोनों के साथ भारत के संबंध बहुत अच्छे हैं। इसीलिए भारत ने दोनों देशों से शांति की राह अपनाने की बात कही और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को बार-बार दोहराया है कि आज का युग युद्ध का नहीं और वार्ता से ही समस्या का समाधान और विश्व में शांति का मार्ग प्रशस्त होता है।

आज संपूर्ण विश्व में युद्ध का संकट और अति-विनाशक हथियारों का प्रसार व भंडारण बढ़ने की वजह से मानव मात्र तथा पर्यावरण पर खतरे की चिंता का स्तर गहन से गहनतर होता जा रहा है। जैसा कि हाल के समय में कई बार देखा गया है कि विश्व के विशेष तनावग्रस्त क्षेत्रों में कई बार स्थिति बहुत तेजी से बिगड़ने का क्रम तेज होता जा रहा है। शीत युद्ध के लंबे अंतराल (1945-1990) में भी जिस तरह के खतरों और टकराव से बचने की सावधानियां बरती गईं, वैसी सावधानियों की आज अनदेखी आम बात होती जा रही है। पिछले कई वर्षों से दुनिया रूस और यूक्रेन युद्ध के परिणामों को झेल रही थी; और अब इजरायल-ईरान के युद्ध ने विश्व के समक्ष नया संकट खड़ा कर दिया। यद्यपि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इजरायल-ईरान के मध्य युद्धविराम की घोषणा तो कर दी है किंतु एक-दूसरे पर हमलों का दौर अभी तक थमा नहीं है। ईरान के नेता खामेनेई ने तो इस युद्धविराम को न मानने की घोषणा तक कर डाली है। अब देखना यह है कि दोनों पक्ष कब एक-दूसरे पर हमलों को विराम देते हैं क्योंकि विश्व के फलने और फूलने के लिए हर हाल में शांति होना अनिवार्य है। ऐसा इसलिए क्योंकि इजरायल-ईरान के बीच युद्ध में गत दिनों अमेरिका भी सीधे–सीधे कूद पड़ा था जब उसने अपने सबसे घातक बी-2 बमवर्षक विमानों से ईरान के परमाणु ठिकानों को ध्वस्त करने के लिए हमला बोल दिया था। इसके बाद रूस,चीन और उत्तरी कोरिया भी ईरान की मदद के लिए आगे आने की बात कहने लगे थे तथा तीसरे विश्व युद्ध के भड़कने की आशंकाएं व्यक्त की जाने लगी थीं।
पहले जब इजरायल ने ईरान पर हमला शुरू किया तो अमेरिका ने न सिर्फ दूरी बनाए रखी थी पर अचानक अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु केंद्रों पर रातों-रात बमबारी कर दी। ट्रंप ने हालांकि इसका संकेत अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ में दिया था कि सबको तेहरान को खाली कर देना चाहिए। ट्रंप ने खुद हमलों की जानकारी देते हुए कहा, परमाणु केंद्र पूरी तरह नष्ट कर दिए गए हैं। साथ ही ईरान को धमकी भी दी कि यदि उसने जवाबी कार्रवाई की तो उसके खिलाफ अधिक हमले किए जा सकते हैं। ट्रंप के जी7 की बैठक को बीच में छोड़ कर लौटने को भी लोगों ने आशंका भरी नजरों से देखा गया था। पेंटागन समेत अमेरिकी सेंट्रल कमांड, राष्ट्रपति के सहयोगी व सलाहकार, प्रशासन के अधिकारी व सैन्य योजानाकार ईरान पर अमेरकी हमले को लेकर अलग-अलग तरह की आशंकाएं व्यक्त कर रहे हैं। अनेक को तो यह ईरान को उकसाने वाली कार्रवाई प्रतीत हो रही है क्योंकि ईरान के नेता खामेनेई पहले ही कह चुके हैं कि वे हर हमले का बदला ले कर ही रहेंगे। एक ओर जहां संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था अमेरिकी हमलों को पर बैठक करने की तैयारी में है, वहीं अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के विरोधाभासी बयानों के चलते ईरान के द्वारा की गई तीखी आलोचना भी देखने को मिली है। सुगबुगाहट तो यह भी है कि ट्रंप की परमाणु केंद्र नष्ट किए जाने की शेखी के बावजूद वास्तविक स्थिति अभी तक स्पष्ट नहीं है। इस बात को कोई नहीं जानता कि ईरान के बम-ग्रेड यूरेनियम को आखिर कितनी हानि पहुंची है जबकि खबरें यह भी हैं कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को पूर्ववत जारी रखने की बात कर रहा है। इसके अलावा ईरान में धार्मिक कट्टरतावाद या खामेनेई युग का अंत इतना आसान भी नजर नहीं आ रहा है। देश में तख्तापलट तब तक संभव दिखाई नहीं देता जब तक ईरानवासी या धार्मिक नेता के विरोधी एकजुट हो कर देश में विरोध का बिगुल न बजा दें।
हालांकि इसे तीसरे विश्व युद्ध का आगाज भी बताया जा रहा है जिसका खामियाजा सारी दुनिया को भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। आज अवश्यकता इस बात की है कि विश्वशांति की बातें करने वाली सभी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को अमेरिका के आगे घुटने टेकने के बजाए सक्रिय हो कर कूटनीतिक तरीके से दुनिया में कहीं भी होने वाले संघर्ष पर कड़े कदम उठा कर विराम लगाना होगा ताकि मानव और मानवता की रक्षा की जा सके। जहां तक भारत की बात है; भारत के हित दोनों ही देशों से जुड़े हैं। ईरान और इजरायल, दोनों के साथ भारत के संबंध बहुत अच्छे हैं। इसीलिए भारत ने दोनों देशों से शांति की राह अपनाने की बात कही और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को बार-बार दोहराया है कि आज का युग युद्ध का नहीं और वार्ता से ही समस्या का समाधान और विश्व में शांति का मार्ग प्रशस्त होता है।

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