ब्रिक्स सम्मेलन में चीन की भूमिका पर सवाल ?
विनोद शील
नई दिल्ली। ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में अगले महीने की 6-7 जुलाई को ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन का आयोजन होने जा रहा है। मिल रही रिपोर्टों को अगर सही माना जाए तो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेने वाले हैं। इस बात पर ब्राजील के राष्ट्रपति लूला द सिल्वा थोड़े परेशान नजर आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि शी जिनपिंग, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए रखी गई ‘डिनर पार्टी’ से खफा हैं।
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट (एससीएमपी) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के राष्ट्रपति को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के ‘शेड्यूल’ से परेशानी है। इसलिए वो इस शिखर बैठक में शामिल नहीं हो सकते। एससीएमपी की रिपोर्ट यह भी कहती है कि चीनी राष्ट्रपति की जगह देश के प्रधानमंत्री ली कियांग अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ इस बैठक में शामिल होंगे।
ब्राजील में 6-7 जुलाई को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन
रिपोर्ट्स के अनुसार ब्राजील के राष्ट्रपति लूला द सिल्वा ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सम्मेलन के बाद विशेष स्टेट डिनर के लिए आमंत्रित किया है। इसकी वजह से बीजिंग काफी असहज हो गया है। कहा जा रहा है कि चीन को इस बात की आशंका सता रही है कि यदि शी जिनपिंग सम्मेलन में शामिल होते हैं तो ब्राजील और भारत के नेताओं की आपसी मुलाकात इस मंच से महफिल लूट लेगी एवं चीनी राष्ट्रपति की भूमिका सिर्फ एक ‘साइड एक्टर’ की तरह दिखाई देगी। इससे विदेशों में जो जिनपिंग की सशक्त नेता की छवि बनाई गई है, वह धूमिल हो सकती है।
राष्ट्रपति लूला ने मई में की थी चीन की यात्रा
ब्राजील के अधिकारियों ने एससीएमपी को बताया है कि राष्ट्रपति लूला ने मई 2025 में चीन की यात्रा भी विशेष रूप से इसीलिए ही की थी ताकि शी जिनपिंग को ब्रिक्स सम्मेलन में आमंत्रित किया जा सके। उन्होंने इसे ‘गुडविल जेस्चर’ बताते हुए उम्मीद जताई थी कि शी जिनपिंग ब्राजील दौरे को लेकर सकारात्मक प्रतिक्रिया देंगे। ब्राजील के विशेष विदेश नीति के सलाहकार सेल्सो अमोरीम ने भी चीनी विदेश मंत्री वांग यी के सामने इस मुद्दे को उठाया भी था। फिर भी चीनी राष्ट्रपति ने ब्रिक्स में शामिल नहीं होने का फैसला किया है।
बताया यह भी एक कारण
दूसरी तरफ चीनी अधिकारियों का कहना है कि शिखर सम्मेलन में शी जिनपिंग की अनुपस्थिति की अटकलों का एक और कारण यह भी है कि लूला और शी जिनपिंग एक साल से भी कम समय में दो बार मिल चुके हैं। उनकी पहली मुलाकात जी20 शिखर सम्मेलन में पिछले साल नवंबर में ब्रासीलिया की राजकीय यात्रा के दौरान, और फिर मई में बीजिंग में चीन-सेलाक फोरम के दौरान हो चुकी है।
चीन ने कहा है कि वह ब्राजील की ब्रिक्स अध्यक्षता का समर्थन करता है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा कि बीजिंग अपने सदस्यों के बीच गहन सहयोग को बढ़ावा देना चाहता है। चीनी अधिकारियों ने कहा है कि एक अस्थिर और अशांत दुनिया में, ब्रिक्स राष्ट्र अपने रणनीतिक संकल्प को बनाए रखते हैं और वैश्विक शांति, स्थिरता और विकास के लिए मिलकर काम करते हैं।
हालांकि चीन की ये दलील पल्ले नहीं पड़ रही हैं क्योंकि द्विपक्षीय मुलाकात अलग है और ब्रिक्स एक मल्टीफोरम प्लेटफॉर्म है। 2008 में जब ब्रिक्स का पहला शिखर सम्मेलन ब्राजील में ही हुआ था, तब चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ चीन में आए विनाशक भूकंप के बावजूद शामिल हुए थे। वह भले ही एक दिन रहे, फिर भी वह शामिल हुए थे। विदेश मामलों के विशेषज्ञों का मत है कि शी जिनपिंग अगर ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल नहीं होते हैं तो इससे ब्राजील-चीन रिश्तों को झटका लगेगा और चीन की उन कोशिशों को भी झटका लगेगा जिसमें वो खुद को ब्रिक्स में नेतृत्वकारी भूमिका में पेश करना चाहता है।
क्या है ब्रिक्स और उसकी महत्ता?
हिंदी में ब्रिक्स का पूरा नाम ‘ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका’ है। इसे अंग्रेजी में ब्रिक्स (बीआरआईसीएस) लिखा जाता है जो इन देशों के नामों के पहले अक्षरों से मिलकर बना है। ब्रिक्स एक प्रमुख मल्टीफोरम मंच है, जिसमें दुनिया की पांच बड़ी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले देश ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। इसकी शुरुआत 2009 में हुई थी और इसका मकसद वैश्विक शासन, व्यापार, जलवायु परिवर्तन, तकनीकी सहयोग और दक्षिण-दक्षिण सहयोग जैसे मुद्दों पर साझा रुख अपनाना रहा है। ब्रिक्स को अक्सर पश्चिमी देशों के नेतृत्व वाले जी7 या नाटो जैसे मंचों के जवाब के रूप में पहचाना जाता है जहां विकासशील देश अपनी आवाज और हितों को मजबूती से प्रस्तुत करते हैं। भारत और चीन जैसे राष्ट्रों के इसमें शामिल होने से यह मंच वैश्विक संतुलन के लिए एक शक्तिशाली उपकरण बन गया है।
ब्रिक्स ने हाल के वर्षों में ब्रिक्स बैंक (न्यू डेवलपमेंट बैंक), कारोबार में डॉलर के अलावा स्पेशल करेंसी बनाने और वैश्विक निवेश के साझा मंच विकसित किए हैं। साथ ही यह मंच सदस्य देशों के बीच सांस्कृतिक, रक्षा, साइबर और वैज्ञानिक सहयोग को भी बढ़ावा देता है। इस सम्मेलन में अगर प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति लूला के बीच द्विपक्षीय वार्ता और स्टेट डिनर होता है, तो यह न सिर्फ भारत-ब्राजील संबंधों को मजबूती देगा बल्कि भारत का लैटिन अमेरिकी राजनीति में भी एक ठोस मौजूदगी का संकेत होगा जिससे यह बीजिंग के लिए एक असहज स्थिति बनाता है जबकि लातिन अमेरिका में चीन खुद को एकमात्र लीडर के तौर पर पेश करने की कोशिश करता है।
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