भारत को समर्थन

दीपक द्विवेदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भागीदारी ने शिखर सम्मेलन का ध्यान वैश्विक मुद्दों, विशेष रूप से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई पर केंद्रित कर दिया। ब्रिक्स नेताओं द्वारा अपनाए गए ‘रियो डी जेनेरियो घोषणापत्र’ में भारत की प्राथमिकताओं पर जोर दिया गया जिसमें बॉर्डर पार आतंकवाद पर तीखा संदेश दिया गया।

वैश्विक स्तर पर हाल ही में दो अहम सम्मेलन हुए। दोनों ही सम्मेलनों में आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के रुख को भरपूर समर्थन मिला। इसी माह के पहले सप्ताह में ब्राजील में आयोजित 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भारत एक सशक्त आवाज के रूप में उभरा। भारत ने आतंकवाद की निंदा की और ग्लोबल गवर्नेंस से जुड़े सुधारों पर बात की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भागीदारी ने शिखर सम्मेलन का ध्यान वैश्विक मुद्दों, विशेष रूप से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई पर केंद्रित कर दिया। ब्रिक्स नेताओं द्वारा अपनाए गए ‘रियो डी जेनेरियो घोषणापत्र’ में भारत की प्राथमिकताओं पर जोर दिया गया जिसमें बॉर्डर पार आतंकवाद पर तीखा संदेश दिया गया और चीन के रुख में विरोधाभास को उजागर किया गया। इस शिखर सम्मेलन का विषय था ‘समावेशी और सतत शासन के लिए वैश्विक दक्षिण सहयोग को मजबूत करना’, जिसमें भारत के दृढ़ संकल्प की झलक सभी सत्रों में देखने को मिली। ‘शांति और सुरक्षा’ पर सत्र को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू-कश्मीर में 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की निंदा की, जिसमें 26 लोगों की जान चली गई थी। उन्होंने इसे ‘मानवता पर हमला’ बताया। ब्रिक्स के घोषणापत्र में भी इस बात को दोहराया गया है, जिसमें हमले की ‘कड़े शब्दों में’ निंदा की गई है और आतंकवाद का मुकाबला करने में दोहरे मानकों को खारिज किया गया है। इसमें संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादियों और उन्हें वित्तपोषित करने या शरण देने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का आह्वान भी किया गया है जिसमें किसी भी देश का नाम तो नहीं लिया गया किंतु सीमा पार आतंकवाद में पाकिस्तान की भूमिका को स्पष्ट रूप से निशाना बनाया गया है।
इसके अलावा अभी पिछले दिनों अमेरिका में क्वाड देशों भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी। उल्लेखनीय है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद यह पहली बैठक थी। पहलगाम आतंकी हमले पर क्वाड के सदस्य देशों का संयुक्त बयान भारत की आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता की कोशिशों को मजबूती देता है। शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (एससीओ) के सम्मेलन में संयुक्त बयान जारी नहीं हो सका था। उसे देखते हुए क्वाड का यह बयान भारत के लिए निश्चित रूप से कूटनीतिक जीत और पाकिस्तान के लिए झटका कहा जाएगा। मीटिंग के पहले भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आशा व्यक्त की थी कि आतंकवाद को लेकर भारत के रुख को क्वाड के सदस्य देश समझेंगे। उन्होंने दुनिया से आतंकवाद को लेकर जीरो टॉलरेंस नीति अपनाये जाने की अपील की थी और संयुक्त बयान इसी भावना को दर्शाता है।
हालांकि क्वाड के साझा बयान में भले ही पाकिस्तान का नाम सीधे न हो पर सीधा संदेश उसी के लिए है। भारत पहले ही सारे सबूत सामने रख चुका है, जो बताते हैं कि पहलगाम के पीछे पाकिस्तान का हाथ था और वहीं से आतंकी आए। अब बयान में साजिशकर्ताओं, हमलावरों और फंडिंग करने वालों को सजा दिलाने की मांग की गई है साथ ही संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों से आह्वान किया गया है कि वे जिम्मेदार लोगों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत मिलकर काम करें। इससे भारत का पक्ष मजबूत होता है। वैसे क्वाड का एक सदस्य देश अमेरिका भी है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान और बाद में भी वॉशिंगटन ने मामले को जिस तरह लिया था, उससे भारत में सही संदेश नहीं गया। ट्रंप प्रशासन के रुख ने भारत का सिर्फ हैरान ही किया था। उसने नई दिल्ली और इस्लामाबाद को एक ही तराजू में रखकर बात की थी।
अब चूंकि बयान में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की भी सहमति है, इसलिए समझा जा सकता है कि अमेरिका का रुख अब बदल गया है। इसके अलावा पाकिस्तान के साथ-साथ पड़ोसी चीन की भूमिका और आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान के करीबी तुर्किये ने भी भारत की चिंता में इजाफा किया था। खासकर, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान जिस तरह की सहायता चीन और तुर्किये ने पाकिस्तान को दी, उससे यह बात साफ है कि भारत का असली शत्रु सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं है।

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